
भगवान तो कण कण में व्याप्त हैं
मध्यकाल के संतों में संत शिरोमणि सेन जी महाराज का नाम अग्रणी है। उन्होंने पवित्रता और सात्विकता पर ज़ोर दिया, लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया। वे कहा करते थे मुझे तो हर पल सभी मनुष्यों में ईश्वर के दर्शन होते हैं और मेरा भगवान तो कण कण में विद्यमान हैं।
जब भगवान ही भक्त बन गये
संत शिरोमणि सेन जी महाराज नित्य ही अपने राज्य के राजा की मालिश करना, बाल और नाखून काटना आदि का कार्य करते थे। एब बार भगवान का भजन करने वाली भक्त मंडली का जत्था जगह जगह जाकर रात भर भजन कीर्तन करती थी। एक दिन भक्त मंडली सैन महाराज के घर भी आ गई, सैन महाराज ईश्वर भक्ति में इस तरह लीन हो गए कि- सुबह राजा के दरबार में जाना ही भूल गए। उधर भक्त की श्रद्धा के वशीभूत स्वयं भगवान सैन महाराज का रूप धारण करके राजा के पास राज दरबार में पहुंच गए।
संत रूप में भगवान ने राजा की पूरी श्रद्धा के साथ सेवा की कि राजा अत्यंत प्रसन्न होकर अपने गले का हार निकालकर संत रूपी भगवान के गले में डाल दिया। अपनी माया शक्ति से भगवान ने वो हार सैन जी के गले में डाल दिया और उन्हें पता तक नहीं चला। बाद में जब सैन जी को होश आया तो वो डरते-डरते महल में गए। उन्हें लग रहा था कि समय पर न पहुंचने की वजह से राजा उन्हें दण्ड अवश्य देंगे। सैन जी को देखकर राजा ने कहा, 'अब आप फिर क्यों आए हैं? हम आपकी सेवा से बहुत खुश हुए, क्या आपको कुछ और चाहिए?
राजा की बात सुनकर सैन जी बोले, 'मुझे क्षमा कर दीजिए महाराज मैं पूरी रात भगवन कीर्तन में लीन रहा कि आपकी सेवा में नहीं आ सका। इस बात को सुनकर राजा को बड़ी हैरानी हुई और बोले 'अरे आप तो आए थे और आपकी सेवा से प्रसन्न होकर मैंने आपको हार भी दिया था और वो अभी आपके गले में भी है।
सैन महाराज अपने गले में हार देखकर चौंक गए, उन्हें एहसास हो गया कि भगवान उनका रूप धारण करके आए थे। उन्होंने राजा से कहा, 'महाराज, यह सच है कि मैं नहीं आया था, मेरी जगह आपकी सेवा करने स्वंय भगवान जी आए थे। आपने ये माला भगवान को दी थी और उन्होंने उसे मेरे गले में डाल दिया। सैन महाराज की बातें सुनकर राजा उनके चरणों में नतमस्तक हो गया और कहने लगा कि अब आप को कुछ करने की जरूरत नहीं है, अब आप सिर्फ भगवत् भक्ति में लीन रहिए। ऐसे थे संत शिरोमणि सेन महाराज जी महाराज।
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